आज मेरे मोहल्ले में फिर से राहत सामग्री बंटी ।
बेसहारों की निराशा की बदली छंटी ।
जुम्मन के घर छ: महीने का राशन जमा हो गया ।
और कल्लन बेचारा भूखा ही सो गया ।
कल क्षेत्र के पार्षद महोदय भी कुछ बांटने आए थे ।
पर साथ में पत्रकार और कैमरा वाला भी लाए थे ।
कल्लन भी राहत सामग्री लेने की लाइन में लगा ।
पर कैमरामैन को देखते ही उसका स्वाभिमान जगा ।
बिना कुछ लिए ही वह वापस घर लौट आया ।
भूख से बिलखते बच्चों को बहला-फुसलाकर सुलाया ।
कुछ भामाशाह भी मोहल्ले में आए थे, पर वह भी कैमरा साथ लाए थे ।
उनके पास भी जरूरत पूरी करने की सारी व्यवस्था थी ।
पर उनको ही बांटा जिनको उनमें आस्था थी ।
जिस नेता की रैली में वह पूरी जी जान से लगा था ।
आज वह भी अपनों ही को बांटने में लगा था ।
पांच किलो आटा भी दस आदमियों को साथ लाकर दे रहे थे ।
जैसे किसी की मजबूरी का शव ढो रहे थे ।
गरीब ,अमीर ,छोटे ,बड़े , लॉक डाउन की वजह से घर बैठे थे ।
कुछ लोग मदद के लिए लिए पास बनवा कर ना जाने क्यों ऐंठे थे ।
फिर कल्लन ने दुखी मन से तहसील के कंट्रोल रूम पर फोन लगाया ।
वहां बैठे ऑपरेटर को अपनी बेबसी का सब हाल कह सुनाया ।
दूसरे दिन एक सरकारी कर्मचारी देवदूत बनकर आया ।
राहत सामग्री के रूप में उसके लिए सौगात लाया ।
उसके साथ ना कोई कैमरामैन था, ना जलालत का चांटा था ।
एक पैकेट में बस शक्कर, तेल, नमक और आटा था ।
जिस सरकारी तंत्र को सब दोष देने में लगे हैं ।
विपत्ति की इस घड़ी में वो ही बेसहारों के सबसे बड़े सगे हैं ।
संकट के इस दौर में सबकी मदद कर रहा प्रशासन ।
जात ,पात, धर्म ,मजहब भूल सबको दे रहा राशन ।
सब की तरह सरकारी सिस्टम भी अगर घर बैठ जाएगा ।
तो प्यासे की प्यास और भूखे की भूख कौन मिटाएगा ।
मुश्किल की यह घड़ी आई और गुजर गई ।
पर एक बात कल्लन के दिल में उतर गई ।
ऐसे वक्त में कौन किसका साथ निभाता है ।
बस अपना ही अपनों के काम आता है ।
............. बस अपना ही अपनों के काम आता है ।
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जीवन कुमार शर्मा भू.अ. नि. तह. टोंक
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